शनिवार, 15 जून 2013

गर्मी छुट्टी डायरिज़ - हमसे दीवाने भी दुनिया की ख़बर रखते हैं

मेरी एक दोस्त ने सुबह-सुबह मुझे व्हॉट्सएप्प पर एक लिंक भेजा। यहां पूर्णियां में अंग्रेज़ी का अख़बार नहीं आता। इसलिए क्योंकि कोई पढ़नेवाला नहीं, और दूसरे दिन अख़बार पढ़ने का कोई मतलब नहीं है। मैं यूं भी अख़बार ख़बर के लिए कम, बीच के पन्नों और कॉलमों के लिए अधिक पढ़ती हूं। अख़बार है नहीं, तो आज सुबह इंडियन एक्सप्रेस में छपा एक दिलचस्प कॉलम पढ़ने से रह गई। आप भी पढ़िए इसे - लहर काला ने ओवरशेयरिंग द स्टोरी ऑफ़ मी के नाम से लिखा है इसे।

हां, हम सब आजकल अपने बारे में लिख रहे हैं, पोस्ट कर रहे हैं, बात कर रहे हैं। हां, ये भी सच है कि हममें से कुछ लोग इसलिए यहां हैं क्योंकि हम लगातार अपने बच्चों के बारे में, उनकी परवरिश के बारे में लिख रहे हैं। हां, ये भी सच है कि हमारे फ़ेसबुक अपडेट्स, हमारे ब्लॉग्स तक इसी एक पेरेन्टिंग के इर्द-गिर्द घूमा करते हैं। और अगर प्रिंट मीडिया हमारे विचारों को छाप रहा है तो इसलिए नहीं क्योंकि पेरेन्टिंग अचानक 'द इन थिंग' हो गया, बल्कि इसलिए क्योंकि 'मदरहुड' या 'पेरेन्टिंग' को कभी तवज्जो दी नहीं गई, कभी इस बारे में बात भी नहीं की गई।

मैं आमतौर पर किसी पोस्ट या किसी कॉलम पर तीखी प्रतिक्रिया ज़ाहिर नहीं करती। मैं हर लिहाज़ से सबकी आवाज़ों के होने और सबकी अभिव्यक्ति के तरीकों की इज्ज़त करने में यकीन करती हूं। हम सबको अपनी-अपनी बात पब्लिक स्पेस में आकर रखने का हक़ है, और एक पाठक को उस विचार से इत्तिफ़ाक़ रखने या उसे सिरे से ख़ारिज़ कर देने का हक़ है।

मैं इस कॉलम को पढ़कर इसलिए परेशान हुई क्योंकि लेखिका ने उन सभी लिखने वालों की धज्जियां उड़ाई हैं जो मां हैं, या मदरहुड पर, ज़िन्दगी के, समाज के छोटे-बड़े मसलों पर अपनी राय लिख रही हैं, अपने विचार पेश कर रही हैं। मेरा सवाल इतना-सा है कि जर्नलिज़्म सिर्फ़ फ्रंटलाईन वॉर अनुभव के बारे में लिखना, सिर्फ़ राजनैतिक उठापटक की बेमानी ख़बरें परोसना और सिर्फ़ विदेश मामलों और स्पॉट फिक्सिंग पर अपनी 'ओरिजनल' राय रखना होता है?

चलिए समाज की बेसिक संरचना पर एक नज़र डालते हैं जिसे समझने के लिए न आपको समाजशास्त्री होने की ज़रूरत है न  'जर्नलिस्ट' या लेखक ही। दुनिया कैसे बनती है? कई देशों से। देश कैसे बने? कई तरह के समाजों से। समाज की धुरी क्या? परिवार। और परिवार की नींव कहां पर? हममें-आपमें। इसी मूलभूत संरचना के तहत अगर हम-आप अपने परिवार को बनाने-बचाए रखने, ख़ुश रखने, उनकी परवरिश करने और देखभाल करने में कोताही करेंगे तो फिर किस तरह के समाज का निर्माण करेंगे हम? हमने अपने बच्चों को एक ख़ुशमिज़ाज, आत्मविश्वासी, ईमानदार इंसान नहीं बनाया तो देश को क्या दिया? और अपना काम करते हुए हमने उस प्रक्रिया के बारे में पब्लिक स्पेस में आकर अपने अनुभव बांटे, अपनी चुनौतियों पर चर्चा की, पेरेन्टिंग के तरीकों की बात की, बच्चों के बारे में बताया तो इसे आत्म-श्लाघा का नाम दे दिया गया?

पब्लिक स्पेस में आकर अपनी ज़िन्दगियों के बारे में बात करने का मकसद सहानुभूति जुटाना कतई नहीं होता। यहां आकर अपने बारे में बात करने का मकसद उन गलत-सही सीखों को बांटना होता है जो ज़िन्दगी जीते हुए हमारे रास्ते में पड़ते हैं। ये छोटे-छोटे लम्हे विदेशी नीतियां तय नहीं करेंगे, लेकिन ये छोटे-छोटे लम्हे उस समाज के प्रतिरूप को रिकॉर्ड करने का, उन्हें डॉक्युमेंट करने का काम उतनी ही ईमानदारी से करेंगे जितनी ईमानदारी से एक मशहूर पत्रकार की किताब करती है।

हम लम्हों में जीने वाले लोग हैं। हम हर दिन कुछ नया देखने का जज्बा देखने वाले लोग हैं। हम बुद्धिजीवी या ज़हीन होने का दावा नहीं करते। हम तो वो औरतें, वो मांएं हैं जिनमें साधारण को, ऑर्डिनरी को ख़ास बना देने का हुनर है। हमने जो अपने नज़रिए से देखा, वो बांटा। हमारी रसोई, हमारा घर, हमारे बच्चे, हमारी दुनिया बेशक बेहद निजी हैं - लेकिन इस निजता में जो सार्वभौमिक हो सकता है, हम वो बांटने आते हैं। और यदि किसी को ये लगता है कि खलबली ही ग्रेट राइटिंग हो सकती है, ठहराव नहीं, तो फिर... आई रेस्ट माई केस योर ऑनर।

मगर जाते-जाते जांनिसार अख़्तर का ये शेर पढ़ते जाएं...

हम से इस दरजा तग़ाफुल भी न बरतो साहब
हम भी कुछ अपनी दुआओं में असर रखते हैं



4 टिप्‍पणियां:

Rajendra kumar ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन और सुन्दर प्रस्तुती ,धन्यबाद।

अनूप शुक्ल ने कहा…


अच्छा लिखा है।

बड़ी-बड़ी बातें लिखने के पहले छोटी-छोटी बातें लिखना जरूरी है।

पैरेंटिंग के बारे में अनुभव लिखना उत्ता ही बल्कि उससे ज्यादा जरूरी है जितना अमेरिकी राष्ट्रपति या फ़िर भारत के प्रधानंमंत्री के चुनाव के बारे में बेमतलब की लंतरानी हांकना! :)

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

काश लोगों को ज्ञात होता कि छोटी छोटी चीजों को ढंग से करने से ही बड़े और सुन्दर विश्व का निर्माण होता है।

Pallavi saxena ने कहा…

वाह क्या करारा जवाब दिया है आपने मज़ा आ गया ...:)